मिट्टी के कण-कण में तू है…
इस आकाश गगन के तारो में तू है..
क्यों तुझे देख मेरा मन भर आए
तुझसे मेरा रोम रोम मुस्कुराए..
कैसी है ये तेरी महिमा
जो मुझे वापस अपने घर लाए..
जल की तरंगों में तू है
इस पवन के झोंकों में तू है..
क्यों मेरा मन पुलकित हो जाए
तेरा ही रंग मुझमें समाए..
कैसी है तेरी ये प्रतिमा
जो मुझे बार-बार बुलाए..
इस पूरे भ्रमांडमें तू है..
हर जीव के कण कण में तू है
क्यों तुझे महसूस केर मेरी आँखें भर आए
इस सुंदर धरती पर युही फूल मुस्कुराए
जहाँ देखो चारो और, मैं अगर,
बस सिर्फ़ तू ही तू, हम सब में समाये !!